भोपाल:- एमपी के कुनो नेशनल पार्क में छोड़े गए चीते आज भी पूरें देश में चर्चा का विषय है। भारत में चीतों के इतिहास को लेकर भोपाल लिटरेचर फेस्टिवल के तीसरे दिन एक रोमांचक चर्चा हुई। खास बात यह थी की भारत में चीतों के इतिहास को लिखने वाले इकलौते डॉ. दिव्यभानु सिंह चावड़ा ने देश में चीतों के इतिहास से जुड़ी कई बातें रखी। डॉ. चावड़ा ने बताया कि देश ही नहीं बल्कि दुनिया में पहली बार 16वीं शताब्दी में चीता की पेंटिंग को अकबर के दरबार में उकेरा गया था। डॉ. चावड़ा की 40 सालों से की गई रिसर्च में यह बात सामने आई कि के चीतों की पूंछ के छोर पर काले या सफेद रंग से अंदाजा लगाया जा सकता है कि वह अफ्रीकन नस्ल का है या भारतीय।
चीतों के नाम पर टूरिज्म को बढ़ावा देना गलत
सरकार पर तंज कसते हुए डॉ चावड़ा ने कहा की सरकारों को अभी देश में चीतों की तादात पर ध्यान देना चाहिए। न की चीतों के नाम पर टूरिज्म पर बढ़ावा देना चाहिए। उन्होंने सरकार की नीतियों पर सवाल करते हुए कहा की ‘चीता टास्क फोर्स’ में टूरिज्म डिपार्टमेंट के ऑफिसर की क्या जरूरत।
क्यों खत्म हुए भारत में चीते ??
अपनी बुक चीता एंड द लास्ट ट्रेल्स में चीतों के शिकार के अलावा भारत में प्रजाति खत्म होने का जिम्मेदार मुगलों को ठहराया। उन्होंने कहा की 16वी शताब्दी में मुगलों द्वारा जंगल से चीतों को इसलिए लाया जाता था जिससे चीते के शिकार करने के तरीके से शिकार करने लगें।
अकबर के दरबार में चीतों को सम्मान
बुक में कई रोचक किस्सों में से एक किस्सा शेयर करते हुए डॉ चावड़ा ने बताया की 16वी शताब्दी में जब चीते शिकार पर जाते थे तो राजा महाराजा की तरह उनके लिए भी ड्रम बज वाए जाते थे। भारतीय महाद्वीप में चीतों के लुप्त हो जाने का रिकॉर्ड साल 1997 का है। महाद्वीप का आखिरी चीता 1997 में बलूचिस्तान में मारा गया था ।
अर्बन होने के फायदे से ज्यादा नुकसान है- सीमा मुंदोली
आर्ट एंड लिटरेचर फेस्टिवल के आखिरी दिन कई सेशन जिनमें इंडिया चाइना के बीच वॉर थ्रेट से लेकर और भी कई सब्जेक्ट्स पर बातें हुई।
सीमा मुंदोली ने सिटीज, इनवाइयरमेंट और सस्टेनबल डेवेलेपमेंटे पर चर्चा करते हुए कहा कि अर्बन होने का फायदा भी बहुत होता है। वहीं इसका नुकसान भी है। उन्होंने अपना अनुभव बताते हुए कहा कि मैं तीन बार बाढ़ में फंसी हूं, इसके बाद मुझे रेसक्यू किया गया है।
हाल में बेंगलुरु में आई बाढ़ का भी उदाहरण देते हुए अर्बन डेवलेपमेंट के नुकसान को भी समझाया। साथ ही उन्होंने कहा कि 2047 में भारत कैसा होगा और इसके सामने कैसी चुनौतियां आएंगी इसके बारे में बताते हुए कहा कि, अगर हम संसाधनों का दुरुपयोग करना नहीं छोड़े तो 2047 तक इमरजेंसी तक का सामना करना पड़ेगा।
इसलिए हमें पर्यावरण और उससे जुड़े हुए संसाधनों का उपयोग बहुत सावधानी से करना पड़ेगा और इसके साथी इनके संवर्धन के लिए एक इकोसिस्टम भी तैयार करना होगा।
इसमें हमने कुछ काम भी शुरू किया है, जैसे इलेक्ट्रिक व्हीकल्स हाइड्रोजन गैस का उपयोग सोलर सिस्टम का उपयोग कर रहे हैं। पब्लिक एवं प्राइवेट पार्टनरशिप के जरिए हमें इन चुनौतियों का अच्छे से सामना कर सकते हैं।
अंग्रेजों के आने के बाद से ऐसी भावना फैलाई गई की सांप्रदायिक सद्भाव कम हो रहा है। लेकिन महाराजा रंजीत सिंह ने सिख होने के बावजूद उन्होंने अपने कोर्ट की आधिकारिक भाषा बदलने के बजाय पर्शियन को ही जारी रखा। उनके विदेश मंत्री मुस्लिम थे, वित्त मंत्री हिंदू थे। कितना गुरुद्वारे को पैसा देते थे उतना ही मंदिर को भी देते थे।