किसान साथियो सरकार ने पिछले दो साल से महंगाई घटाने के लिए जो भी कदम उठाए जा रहे हैं, उससे किसानों को हो रहे नुकसान के अलावा कितनी मात्रा में राजस्व हानि हो रही है, इस ओर ध्यान क्यों नहीं जा रहा है, यह समझ से परे है।
चाहे गेहूं के किसान हों या सरसों के दोनों को सरकारी सपोर्ट की बजाय सरकारी असहयोग मिल रहा है।
पिछले साल 13 मई को गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने से 2800 से 3000 रुपए क्विंटल बिक रहा है गेहूं एक ही झटके में नीचे आ गया और 2300 से 2400 रुपए के आसपास बिका।
लेकिन बड़ी बात यह है कि उस वक़्त देश के बंदरगाहों पर 16 से 18 लाख टन गेहूं अटका हुआ था। प्रतिबंध के बाद इस गेहूं की बुरी गत हुई।
लंबे समय से नैफेड MSP पर दलहनों की खरीद कर उसे 1-2 वर्ष तक गोदामों में रख कर गोदाम, ब्याज भाड़ा आदि को नजर अंदाज कर लागत से 100 से 800 रूपए कम भाव पर बेचकर देश को और किसानों को बेवजह घाटे में उतार रहा है |
सरकार को लग रहा करोड़ों का चूना
हाल ही में खाद्य निगम के निर्णय से लाखों किसानों को राजस्व की हानि होने जा रही है। इस घाटे हानि से लाखों किसानों की बेवजह कमर टूट रही है।
आगे जाकर बाजारों की रौनक उड़ती नजर आना स्वाभाविक है। देश में पिछले 6-7 माह से गेहूं की कमी चल रही थी।
जैसे-जैसे फसल पकने का समय नजदीक आ रहा था। देश में पुराने गेहूं का स्टॉक समाप्ति की ओर होने से भाव बढ़ते जा रहे थे।
गेहूं के भाव 3200 तक पहुँच गए थे। ऐसा लग रहा था जैसे किसानों को इस साल गेहूं के अच्छे भाव मिलेंगे।
लेकिन इसी बीच खाद्य निगम ने 2300 एवं 2350 रूपए में गेहूं बेचने की घोषणा कर दी।
साथ ही देश के किसी भी भाग में समान मूल्य पर गेहूं की बिक्री की जाने लगी। इस नीति से परिवहन खर्च का करोड़ों का नुकसान निगम को होना तय है।
इसके बाद निगम ने एक और निर्णय लिया जिसके बाद फिर से गेहूं के भाव 200 रुपए क्विंटल • भाव घटा दिए।
अब 3000 के उपर के रेट के 50 लाख टन गेहूं पर सरकार को कितनी मात्रा में घाटा होगा इसका अंदाज भी आसानी से लगाया जा सकता है।
क्या MSP के ऊपर रहेंगे भाव
गेहूं के भाव: सरकार अगर किसानों के बारे में सोचती तो नई फसल आने के बाद गेहूँ 2400 से 2600 रूपए प्रति क्विंटल के रेट में आसानी से बिक सकता था और मध्यप्रदेश का गेहूं तो चटनी की तरह साफ हो सकता था।
किसानों में संपन्नता आ सकती थी। खाद्य निगम गेहूं लागत मूल्य से काफी कम भाव पर बिक्री कर रहा है।
इससे गेहूं उत्पादक किसानों की पिटाई शुरू हो गई है। ऐसी नीति शायद ही किसी अन्य देश में नहीं अपनाई जाती होगी। कुल अनुमानित उत्पादन |
करोड़ टन में से 4-6 करोड़ टन खुले बाजार में बिक सकता था। अगर भाव और नीचे गिरे तो किसानों को सरकार को ही MSP पर बेचना पडेगा। जिसका रेट सिर्फ 2125 रुपए है।
किसानो और व्यापारियों को नुक्सान
गेहूं की कीमत: किसान साथियो साल 2022 एवं 2023 में सरकार, किसान, उद्योग, स्टॉकिस्ट एवं व्यापारियों ने अरबों रुपए के राजस्व का घाटा उठाया है।
धान के किसानों को छोड़कर सभी को परेशानी से गुजरना पड़ा है। सभी पक्षों को हुए इतने बड़े घाटे के बाद अंदरूनी रूप से देश की आर्थिक व्यवस्था डगमगाने से बच नहीं सकती है।
भले ही इसके सीधे प्रभाव का अभी अहसास नहीं हो रहा है। चाहे सरसों हो ग्वार हो या फिर अब गेहूं सबके किसानों, व्यापारियों और मिलों को भारी नुकसान से गुजरना पड़ रहा है। इतने नुकसान के बाद बाजारों में ग्राहकी सुस्त बनी रहने की संभावना है।
पिछले 5-7 दशकों में ऐसी राजस्व की इतनी हानि न देखी और न सुनी गई। कमजोर व्यवसाय के चलते कारण साल 2022-23 में दलहनों और तिलहनों का बक्रा एमएसपी से कम में हो रही है।
साल 2023 में तो तैयारी की जा रही है कि 11 करोड़ टन गेहूं की फसल को एमएसपी के समान या इससे नीचे लाकर बिकवाया जाए।
टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के अनुसार महाराष्ट्र के हिसाब ने 512 किलो प्याज बेचकर मात्र 2 रुपये कमाए।
फ़सल के काटते ही भावों का इस प्रकार से गिरना कमजोर व्यवस्था का प्रमाण है।
किसानों की आय दुगना करने और आर्थिक सहायता देने के बजाय एक झटके में किसानों को अरबों रुपए लाभ से वंचित कर दिया जाता है।